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कविता

मूल्य कूजन का

वीरेंद्र आस्तिक


सामने हो तुम तुम्हारा
मौन पढ़ना आ गया
खुशबुओं को एक आँधी
में ठहरना आ गया।

देखिए तो इस प्रकृति को
एक यह श्रृंगार है
और सुनिए तो सही
कैसा ललित उद्गार है

शब्द की अव्यक्त
ताकत पर
भरोसा आ गया।

मद मरुत है मिश्रगंधी
दूर तक धरती हरी
और इस पर्यावरण में
तिर रही है मधुकरी

साथ को
संकोच तज
स्वच्छंद रहना आ गया।

शांतिमय जीवन कठिन
संघर्ष है पर खास है
मूल्य कूजन का बड़ा
जब हर तरफ संत्रास है

जिंदगी की रिक्तता में
अर्थ
भरना आ गया।


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